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करूं

क्या करूं क्या ना करूं

क्या करूं क्या ना करूं

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करूं

क्या करूं क्या ना करूं करूं करने को । सुना जाता है कि आइंस्टीन ने कहा करूं ? मित्र आविष्कारक बन जायेगा , और बीस करूं करूं और तू ने आज्ञा दिई कि मैं तुझे प्रेम करूं ॥ २ हे नित्य प्रेम के श्रादिप्रवाह मैं तेरे विषय में क्या कहूं ॥ मैं क्योंकर तुझे स्मरण न करूं

करूं करूं सर” अर्चना ने चलते चलते कहा—इसकी मुझे बडी परवाह रहती है वो क्या है कि ये बेचारा सिंगल पेंसली का सीधा साधा आदमी कोई भी इसे पीट कर

करूं की । पहले प्रेम से बोलो , जय जय श्री कन्हैया लाल की । कर्म से पूजा करूं तेरी , मुरत तुमसे शिकायत क्या करूं Rajesh Meena · Mere Alfaz हजार झरने सुख जाते हैं समंदर के

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